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प्रोफ़ाइल
एसपीएमसीआईएल की एक इकाई भारत सरकार टकसाल, कोलकाता ('आईजीएम, कोलकाता') संचलन सिक्कों, स्मारक सिक्कों और पदकों के निर्माण में लगी हुई है। आईजीएम के पास गुणवत्ता वाले उत्पादों के उत्पादन की एक समृद्ध खनन विरासत और विरासत है। नया टकसाल 1952 में स्थापित किया गया था और 2006 में निगमीकरण के दौरान SPMCIL की इकाई बन गया। यह एक ISO 9001:2008 और ISO 14001:2004 प्रमाणित इकाई है।
उन्नत प्रौद्योगिकी, नवाचार, गुणवत्ता और विश्वसनीय वितरण विधियों का उपयोग आईजीएम कोलकाता की ताकत के कुछ घटक हैं।
संगठन संरचना
इतिहास
कोलकाता टकसाल का इतिहास ईस्ट इंडिया कंपनी की नवाब सिराज-उद-दौला के साथ 7 फरवरी 1757 में की गई संधि से शुरू होता है । 1756 में बंगाल के नवाब ने हमला करके कलकत्ता पर कब्जा कर लिया, जिस पर अंग्रेजों ने जनवरी 1757 में अपनी सेना और बेड़ा भेज कर शहर पर पुन: कब्जा कर लिया । इसके पश्चात उन्होंने नवाब को उन्हें एक टकसाल बनाने का अधिकार देने के लिए मजबूर किया तथा सिक्के ढालना शुरू कर दिया । सिक्कों पर पहले टकसाल का नाम अलीनगर लिखा गया । कलकत्ता का अलीनगर नाम नवाब द्वारा दिया गया था । हालांकि, नए नवाब ने अग्रेजों को प्लासी के युद्ध के वर्ष में बाद में टकसाल के कलकत्ता नाम से सिक्के ढालने की अनुमति दे दी । ऐतिहासिक रिकॉर्डों में, हालांकि, अक्सर भिन्नता पाई जाती है और थेर्सटन ने टकसाल का समय 1759 या 1760 निर्धारित किया है जब सिराज-उद-दौला की संधि के बाद एक परवाना (अनुमति या लाईसेंस) लिया गया था । हालांकि, सितम्बर 1757 में श्री फ्रैंकलैंड और श्री बोडम संयुक्त मिंट मास्टर नियुक्त किए गए और टकसाल ने पूर्ण रूप से काम करना शुरू कर दिया और नवाब की स्वीकृति के लिए कासिमबाजार 3050 रूपए भेजे गए और 5 लंदन में । कलकत्ता टकसाल में बने सबसे पहले के सिक्के मुगल पैटर्न पर थे और उन पर फारसी में लिखा गया था । पहली टकसाल की जगह मालूम नहीं है ।
दूसरी कलकत्ता टकसाल 1790-1792 में स्थापित की गई। मशीनें जिलेट जहाज निर्माण संस्थान की जगह में स्थित इमारत में लगाई गईं। 1833 में यह जगह स्टैंप और लेखन सामग्री समिति ने अपने अधिकार में ले ली । शायद यह वही परिसर था जहाँ स्ट्रैंड रोड और चर्च लेन के बीच लेखन सामग्री कार्यालय स्थित था।
स्ट्रैंड रोड पर तीसरी टकसाल बनाने की योजना 1819 में बनाई गई, शिलान्यास मार्च 1824 में किया गया और 1 अगस्त 1829 में इसका उद्घाटन किया गया । इसके वास्तुकार मेजर जनरल विलियम नैर्न फोर्ब्स थे, जो इस टकसाल के पहले मास्टर भी थे। वे कलकत्ता के प्रसिद्ध सेंट पॉल कैथेड्रल के भी वास्तुकार थे ।
मेजर जनरल फोर्ब्स की 1858 में एक संगमरमर की अर्ध-मूर्ति लंदन में बनाकर कलकत्ता भेजी गई । वर्तमान में फोर्ब्स की अर्ध-मूर्ति भारत सरकार टकसाल, कोलकाता के संग्रहालय में रखी गई है । अर्ध-मूर्ति पर यह लिखा हुआ है:
ईस्ट इंडिया कंपनी के माननीय कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने कलकत्ता की नई टकसाल (स्ट्रैंड रोड पर) में मेजर जनरल विलियम नैर्न फोर्ब्स, बंगाल इंजिनियर्स, इस मिंट के मास्टर, की यह अर्ध-मूर्ति उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए रखी है, जिन्होंने इस भव्य इमारत का डिजाइन और निर्माण किया, सभी जटिल मशीनों को लगाया और बीस से अधिक वर्षों के लिए संस्थान का सफलतापूर्वक संचालन किया । जनरल फोर्ब्स ने नई टकसाल की इमारत का निर्माण 31 मार्च 1824 में शुरू किया और 1 अगस्त 1829 में निर्माण पूरा किया । वे 1824 से 1855 तक अर्थात 31 वर्षों तक के लिए इस संस्थान से एक वास्तुकार, मशीनों के अधीक्षक और मिंट मास्टर के रूप में जुड़े रहे। उनका जन्म तीन अप्रैल 1796 में हुआ और मृत्यु एक मई 1855 में हुई ।
कलकत्ता की तीसरी टकसाल को सिल्वर मिंट के नाम से जाना जाता था, हालांकि वहाँ सोने के सिक्के भी ढाले गए थे। सिल्वर मिंट की उत्तरी दिशा में 1860 में खासतौर से तांबे के सिक्कों की ढलाई के लिए एक नई इमारत का निर्माण किया गया जिसे “कॉपर मिंट” नाम से जाना जाता था।
इस टकसाल की वास्तुकला मुख्य रूप से ग्रीको-डोरिक शैली की थी और अग्रभाग एथेंस में मिनर्वा मंदिर के आयाम का बनाया गया था । भारतीय सिक्का ढलाई में इस टकसाल ने सोना, चाँदी, निकल, तांबा, ताम्र निकल, निकल-पीतल एवं काँस्य सिक्कों की ढलाई करके एक गौरवशाली भूमिका निभाई ।
इस टकसाल ने ऑस्ट्रेलिया, ग्रेट ब्रिटेन, इजिप्ट, पोर्तुगीज इंडिया, सउदी अरब, भूटान और पाकिस्तान के लिए सिक्के बनाए तथा सीलोन, स्ट्रेट सरकारों या स्ट्रेट बस्तियों (1826 में मलय में ब्रिटिश बस्तियों का एकीकरण किया गया और स्ट्रेट सेटलमेंटस् नाम से एक गवर्नर के अधीन रखा गया) और इम्पीरियल ब्रिटिश ईस्ट अफ्रीका कंपनी, मोम्बासा के लिए भी सिक्के बनाए ।
देशीय राज्य सिक्का ढलाई अधिनियम, क्र. IX , 1876 के तहत कुछ शर्तों के अधीन देशीय राज्यों के लिए सोने, चाँदी और तांबे के सिक्के ढाले जा सकते थे जिसके लिए राज्य को धातु की आपूर्ति करनी थी । अलवर, धार और देवास राज्यों के लिए सिक्के कलकत्ता टकसाल में बनाए गए थे । किंग एडवर्ड VII के शासन के दौरान कलकत्ता टकसाल ने सैलाना देशी राज्य के लिए चौथाई आना के कांस्य सिक्के ढाले ।
कोलकाता टकसाल केवल सिक्कों के उत्पादन तक ही सीमित नहीं थी । इसने सरकारी विभागों, शिक्षण संस्थानों, राजघरानों आदि के लिए पदकों, अलंकरणों, स्मारक वस्तुओं और नाजुक वस्तुओं का उत्पादन कुशल कारीगरी के साथ किया । दिल्ली दरबार के राजा और रानी (1911) द्वारा इस्तेमाल किया गया सिंहासन इस कलकत्ता टकसाल में 96000 पुराने चाँदी के सिक्के गलाकर ढाला गया था । दिल्ली में दरबार इमारत और अन्य स्मारकों के फलकों का निर्माण इस टकसाल ने किया ।
कलकत्ता टकसाल का अलीपुर स्थानांतरण इस बीच भारत सरकार को काफी पहले 1940 में एक नई अधिक क्षमता वाली टकसाल की जरूरत महसूस हुई और इसे अलीपुर में स्थापित करने की योजना बनाई गई । निर्माण कार्य 1941 में शुरू हुआ। 1942 की शुरूआत में नींव का कार्य पूरा हो चुका था और कारखाने की भव्य इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था। मार्च 1942 में, द्वितीय विश्व युद्ध के कारण पूर्वी भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा बढ़ रहा था । तब 1943 में नई टकसाल को लाहौर ले जाने का निर्णय लिया गया ।
कलकत्ता टकसाल का अलीपुर स्थानांतरण
इस बीच भारत सरकार को काफी पहले 1940 में एक नई अधिक क्षमता वाली टकसाल की जरूरत महसूस हुई और इसे अलीपुर में स्थापित करने की योजना बनाई गई । निर्माण कार्य 1941 में शुरू हुआ। 1942 की शुरूआत में नींव का कार्य पूरा हो चुका था और कारखाने की भव्य इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था। मार्च 1942 में, द्वितीय विश्व युद्ध के कारण पूर्वी भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा बढ़ रहा था । तब 1943 में नई टकसाल को लाहौर ले जाने का निर्णय लिया गया ।
मूल रूप से यह माना गया कि द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद जैसे ही परिस्थियाँ सामान्य हो जाती हैं, टकसाल को लाहौर से अलीपुर वापस स्थानांतरित कर दिया जायेगा । लेकिन, युद्ध समाप्त हो जाने के बाद राजनैतिक परिस्थियाँ बदल गईं और यह स्पष्ट हो गया कि लाहौर टकसाल पाकिस्तान में जायेगी । अलीपुर टकसाल परियोजना को 1948 में पुन: शुरू किया गया और निर्माण कार्य 1951 में पूरा हुआ ।
भारत सरकार ने अलीपुर टकसाल के लिए 1941 में कलकत्ता के बंदरगाह आयुक्त से 26 एकड़ जमीन ली थी । अलीपुर टकसाल की इमारत की डिजाइन भारत सरकार के वरिष्ठ वास्तुकार श्री.एच.ए.एन.मेड ने तैयार की । इमारत का निर्माण मेजर जे.एच.पारट्रिज, रॉयल इंजीनियर की देखरेख में किया गया जो बाद में अलीपुर टकसाल के पहले मास्टर बने । भारत सरकार के माननीय वित्त मंत्री श्री सी.डी.देशमुख ने 19 मार्च 1952 को अलीपुर टकसाल का उद्घाटन किया और सिक्का ढलाई का काम पूर्ण रूप से शुरू हुआ । श्री ए.ए.जे गोमेज टकसाल के पहले भारतीय मास्टर बने ।
अलीपुर की नई टकसाल ने लगभग 12 लाख नग प्रति 8-घंटे पारी की सिक्का ढलाई उत्पादन क्षमता के साथ काम शुरू किया ।
उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त 1947 में भारत स्वतंत्र में होने के बाद तुरंत सिक्का ढलाई गतिविधि में कोई बदलाव नहीं हुआ । स्वतंत्रता से पहले प्रचलित निकल रूपया, आधा रूपया, चौथाई रूपया, ताम्र-निकल दो आना, एक आना और आधा आना और काँसे का एक पैसा, जिन पर राजा जॉर्ज VI की मूर्ति बनी हुई थी, की ढलाई स्वतंत्रता के बाद के कई वर्षों तक जारी रही जबकि वर्ष 1947 ही अंकित किया जाता रहा ।
15 अगस्त 1950 में सिक्कों की एक नई मालिका जारी की गई जिसमें एक रूपया, आधा रूपया, चौथाई रूपया, दो आना, एक आना, आधा आना और एक पैसा मूल्यवर्ग के सिक्के थे तथा सिक्कों के अग्र-भाग पर अशोक स्तंभ बना हुआ था । एक रूपया, आधा रूपया, चौथाई रूपया के पीछे के भाग में अनाज की दो बालियाँ मुद्रित थी । दो आना, एक आना और आधा आना के पीछे के भाग पर सांड का चित्र और एक पैसे के पीछे के भाग पर घोड़े का चित्र था ।
भारत सिक्का ढलाई अधिनियम, 1906 को सितंबर 1955 में संशोधित किया गया और सरकार को सिक्का ढलाई में मैट्रिक या दशमलव प्रणाली अपनाने का अधिकार मिला । यह देश की सिक्का ढलाई के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी । दशमलव प्रणाली के अनुसार रूपए को 100 पैसों में विभाजित किया गया और रूपए की सबसे छोटी इकाई एक पैसा थी ।
प्रचलित सिक्कों के अलावा, अलीपुर टकसाल स्मारक सिक्के भी बनाती है जिन्हें विशेष अवसरों और घटनाओं को मनाने या विशिष्ट व्यक्तियों या स्मारकों के सम्मान में जारी किया जाता है। टकसाल ने पहला रु.100, रु10, रु 1 के स्मारक सिक्कों का सेट वर्ष 1985 में अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष के अवसर पर जारी किया ।
भारत सरकार टकसाल, कोलकाता पदक बनाती है जैसे भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री, भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, विश्व टिकट-संग्रह प्रदर्शनी, परम वीर चक्र, महावीर चक्र और विभिन्न शैक्षणिक और सामाजिक संस्थानों के पदक । टकसाल राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों के लिए भी पदक बनाती है ।
भारत सरकार टकसाल, अलीपुर, कोलकाता ने सिक्का ढलाई की दुनिया में अपने और भारत के लोगों के लिए दशकों से विश्वसनीयता और विश्वास अर्जित किया है । टकसाल अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों का अनुसरण करती है और एक आईएसओ 9001:2008 प्रमाणित कंपनी है ।